नास्तिक ब्रह्मचारी के लिए त्रिचरन विधि

अभी यह तो हुई आदर्श विधि की बात।

परंतु यदि आप यह मानते हो कि, ‘मैं तो नास्तिक हूँ। और यदि थोड़ा आध्यात्मिक हूँ तो भी इस स्तर पर तो नहीं ही हूँ की इतना दृढ़ ध्येय भगवद्माप्ति के लिए बना पाऊँ। मुझे अध्यात्म में इतनी रुचि है ही नहीं। और यदि है तो भी इतनी प्रबल नहीं है कि उसकी प्रेरणा के बल पर इस विधि का पालन कर पाऊँ। तो फिर मैं ब्रह्मचर्य का पालन कैसे करूँ?’

उत्तर है,

इसी विधि से।

जी हाँ!! इसी विधि से। बस बदलाव यही है कि आपका ज्ञान और ध्येय यहाँ बदल जाएगा, परंतु मूलभूत सिद्धांत वही रहेगा।

चलिए मान लेते हैं कि,

आप में उस स्तर का आध्यात्मिक मनोबल अभी नहीं है। या फिर आप जीवन में ऐसी स्थिति में ही नहीं हो कि सीधा आदर्श विधि का पालन कर पाओ।

ऐसे में भी ब्रह्मचर्य पालन इसी त्रिचरण विधि से कर पाओगे। और बदलाव कुछ इस प्रकार होगा।

1. ज्ञान प्राप्ति :

यदि आप भगवद् प्राप्ति को अपना ध्येय नहीं बनाना चाहते हो तब फिर अधिक आध्यात्मिक ज्ञान की आवश्यकता है ही नहीं। क्योंकि फिर आपका ध्येय सिर्फ़ इस संसार और इस जीवन तक ही सीमित हो जाता है।

और उसके लिए सिर्फ़ आपको समाज का व्यावहारिक ज्ञान हो जाए उतना ही पर्याप्त है। और उस संपूर्ण व्यावहारिक ज्ञान का सार यही है कि…

‘एक पुरुष को चाहे जीवन में उच्चतम कक्षा का योग करना हो या उच्चतम कक्षा का भोग। फिर उसे जीवन में स्त्री सुख प्राप्त करना है, धन सुख प्राप्त करना है, संपत्ति चाहिए है, मान सम्मान चाहिए है या फिर प्रसिद्धि। इन सभी की प्राप्ति का एक ही मार्ग है, वो है सक्षमता।

और सक्षमता की प्राप्ति का एक ही मार्ग है जो की है, पौरुष ।

जो पुरुष जीवन में पौरुष दिखा पाता है, शौर्य, साहस, निर्भयता, अनुशासन आदि दिखा पाता है, वही इस लौकिक और पारलौकिक जीवन में सुख व समृद्धि की प्राप्ति कर पाता है। अतः पुरुष के लिए जीवन में किसी भी ध्येय की प्राप्ति के लिए पौरुष वृद्धि के अत्तिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है।’

आपकी आध्यात्मिक इच्छाएँ प्रबल नहीं है,

इसका अर्थ है कि आपकी भौतिक इच्छाएँ उससे अधिक प्रबल है। परंतु भौतिक जगत में भी उच्चतम सुख की प्राप्ति करने के लिए भी पौरुष तो चाहिए ही होगा, और वो भी ब्रह्मचर्य के पालन से ही मिलेगा।

क्योंकि ऐसी सुंदर, सुशील और आपसे समर्पित रहे ऐसी स्त्रियाँ सिर्फ़ उच्च कक्षा के सक्षम पुरुष का ही वरण करेंगी।

और क्यों न करें?

वो ऐसे पति का वरण क्यों करेंगी जिसने,

1. न ही जीवन में अपनी सक्षमता से कुछ प्राप्त किया है,

2. न ही संकट में अपनों की रक्षा कर पाता है, बातबात में घबरा जाता है,

3. न ही अपना और अपनों का पालन पोषण कर पाता है,

4. न ही उसका समाज में कोई मान सम्मान है,

5. न ही मन और शरीर पर कोई संयम है, थोड़ी सी ख़ुशी में झूमने लगता है और थोड़े से दुःख में रोने लगता है,

6. न ही उसके जीवन में कोई ध्येय है, बस दिन रात गेम्स खेलता रहता है और फ़िल्में देखता रहता है,

7. न ही जीवन में कोई अनुशासन है। बस अवसर मिलते ही बाथरूम में जाकर बड़ी बड़ी कल्पनाएँ कर के अपना वो सारा पौरुष नालियों में बहा देगा जिससे सचमें जीवन में वो अपने ध्येयों की प्राप्ति कर सकता था।

वो ऐसे ही पति का वरण करेंगी जो,

1. उतना सक्षम हो की जीवन में मेहनत से कुछ प्राप्त किया हो,

2. उतना बलवान हो की संकट में साहसी होकर उसकी रक्षा कर पाए,

3. उतना कमाता हो कि अपना और अपनों का पालन पोषण कर सकें,

4. उतना बुद्धिमान और विवेकशील हो कि समाज में उसका सम्मान हो,

5. उतना संयमी हो कि जीवन के उतार चढ़ाव में अटल रहे,

6. उतना परिपक्व हो कि जीवन में उसके उत्तम ध्येय हो,

7. उतना अनुशासन युक्त हो कि अपने ध्येयों की प्राप्ति कर पाए।

और इसमें कुछ ग़लत नहीं है, ऐसा ही होना चाहिए।

आप पुरुषार्थ से ऐसे बन पाओ इसीलिए भगवान ने आपको पुरुष शरीर दिया है, न की पड़े पड़े धरती व समाज पर बोझ बनने के लिए।

अतः यदि आपको भोग भी करना है तो भी उच्चतम भोगों की इच्छा कीजिए, न की काल्पनिक भोगों की। अतः यदि आपको स्त्री सुख चाहिए है तो उस स्तर के पुरुष बनने का ध्येय बनाएँ जिसे उच्चतम कक्षा की सुंदर, रूपवती, गुणवती और संस्कारी स्त्री अपने पति के रूप में वरण करना पसंद करें।

परंतु जितना आप पौरुष से दूर भागोगे, उतना अधिक आपको हर कोई प्रताड़ित करेगा, फिर वो प्रजा हो, प्रकृति हो या प्रेमी। क्योंकि एक पुरुष को मान सम्मान और प्रेम तभी मिलता है जब वो पौरुष दिखाकर जीवन में कुछ सार्थक काम करता है।

असक्षम पुरुषों से अधिक लोग पालतू कुत्तों से प्रेम करते है। इस तथ्य को स्वीकारने के अतिरिक्त आप कुछ नहीं कर सकते हैं। यह संसार ऐसा ही है।

अब या तो आप जीवन भर इसको लेकर रोना रो सकते हो, या फिर इसे स्वीकार कर जीवन में पौरुष दिखाना शुरू कर सकते हो।

हालाँकि अच्छे समाचार यह है कि,

पौरुष दिखाने और सक्षमता की प्राप्ति से सिर्फ़ एक सुख की प्राप्ति कभी नहीं होती। जैसे ही पुरुष अपने जीवन के किसी एक क्षेत्र में आगे बढ़ता है, तुरंत ही उसे जीवन के अन्य क्षेत्रों में स्वयं ही सुखों की या तो प्राप्ति होने लगती है या तो प्राप्ति करना सरल होने लगता है।

जैसे कि, जब आप जीवन में अच्छा पैसा कमाने लगते हो, तो समाज में आपको मान सम्मान मिलने लगता है। और आप अपने माता, पिता, परिवार, संत, गुरु और धर्म की अधिक अच्छे से सेवा कर पाते हो।

परिवार के स्वास्थ्य की रक्षा भी अच्छे से कर सकते हो क्योंकि अब वो उच्च गुणवत्ता की भोजन सामग्री ख़रीद सकते हो और बिना पैसे की चिंता के अधिक सरलता से स्वास्थ्य संबंधी निर्णय ले सकते हो।

वैसे ही यदि कोई कन्या पसंद है, तो उसके माता पिता समाज में आपकी सक्षमता के गुणगान सुनने मात्र से आपको अपनी पुत्री देने के लिए तैयार हो जाते हैं और वह स्त्री भी इन्ही गुणों को सुनकर आपको समर्पण करने के लिए तत्पर होने लगती है।

वैसे ही यदि पुरुष ज्ञान की प्राप्ति में पौरुष दिखाता है, समाज सेवा में पौरुष दिखाता है, किसी कौशल (Skill) में पौरुष दिखाता है, शारीरिक बल में पौरुष दिखाता है तो उनके साथ अन्य क्षेत्रों में भी सुख की प्राप्ति करता है।

2. ध्येय धारण :

तो, यही है आपका ध्येय, जीवन में 5 रूपों में सक्षमता,

1. शारीरिक रूप से,

2. मानसिक रूप से,

3. सामाजिक रूप से,

4. आर्थिक रूप से,

5. आध्यात्मिक रूप से।

आपका यह कर्तव्य है कि आप इन सभी क्षेत्रों में कम से कम एक आवश्यक हद तक की सक्षमता तो प्राप्त करें ही करें। जैसे कि,

1. शारीरिक रूप : से कम से कम इतना तंदुरस्त रहो की आप सर्वप्रथम तो बीमारियों से दूर रहो। दूसरी बात की इतने दुबले न हो कि कोई एक घुसा मारे और आप गिर जाओ और इतने भी मोटे न रहो कि यदि गिर जाओ तो तुरंत ही खड़े न हो पाओ।

2. मानसिक रूप : से कम से कम इतना सक्षम रहना है कि कितनी भी जीवन में, परिवार में या समाज में तकलीफें आ जाएं, आप किसी भी हालत में स्थिर रह सको और संकट के समय में परिवार और समाज में औरों का सहारा बन पाओ।

जैसे कि यदि परिवार में पिता या किसी महत्त्वपूर्ण व्यक्ति का देहांत हुआ हो, तो उनके अंतिम संस्कार में जब परिवार में सभी लोग मानसिक रूप से टूट कर बिखर चुके हैं, ऐसे में आप उनके लिए स्तंभ के समान बनकर रहो और स्थिति को और परिवारजनों को अच्छे से सम्भाल लो।

3. सामाजिक रूप : से कम से कम इतना सक्षम रहें की गाँव, कॉलोनी और नज़दीकी परिवार के सभी लोगों की आँख में आपके लिए आदर सम्मान हो। और वो भी कम से कम इतना कि यदि आधी रात को कोई आपदा आ जाए तो एक पुकार पे कोई भी आपकी सहायता के लिए प्रस्तुत हो जाए। और जब भी आपके पीछे आपकी बात निकले तो उनके मुख से प्रशंसा ही निकले।

4. आर्थिक रूप : से कम से कम इतना सक्षम रहें कि सर्वप्रथम तो घर में 4. किसी के भी ऊपर कोई ऋण (Debt) न हो। दूसरा, घर में सबको खाने के लिए पौष्टिक आहार, पहनने के लिए स्वच्छ कपड़े, रहने के लिए सुरक्षित व आरामदायक घर, ज़रूरत पड़ने पर चिकित्सा के लिए पर्याप्त सुविधाएँ और संत व अतिथि के आतिथ्य लिए पर्याप्त सेवा सामग्री हमेशा हो।

5. आध्यात्मिक रूप : से कम से कम इतना सक्षम रहना है की हृदय में कभी किसी के प्रति पाप वृत्ति न रहे। हमेशा लोक कल्याण के ही विचार आए। कभी किसी का बुरा न हो, संतों और भक्तों की सेवा करने का अवसर मिलने पर हृदय आनंद का अनुभव करे और जीवन की हर स्थिति में आप अपने धर्म और मूल्यों की रक्षा के लिए दृढ़ रह पाएँ।

इन सभी क्षेत्रों में कम से कम इतनी सक्षमता तो पाएँ ही।

यदि आपको लगता है कि आप अभी इस स्तर पर नहीं हो तो प्रथम अपने आपको इस स्तर पर लाने का ध्येय बनाइए।

और यदि आप इस स्तर पर हो, तो अब इनमें से किसी एक या अधिक क्षेत्रों में श्रेष्ठता प्राप्त करने का ध्येय बनाइए और उस क्षेत्रों में पौरुष दिखाइए ।

स्मरण रहे!! पौरुष की कोई मर्यादा नहीं होती है।

हमारी संस्कृति में ऐसे ऐसे चक्रवर्ती सम्राट हुए हैं जिन्होंने संपूर्ण पृथ्वी पर सदियों तक राज किया था।

ऐसे ऐसे तपस्वी भी हुए हैं, जिन्होंने अपने तपोबल से एक पूरे नये ग्रह की रचना कर दी थी।

ऐसे ऐसे संत भक्त हुए हैं जिन्होंने अपने स्वयं भगवान को दरवाज़े पर खड़ा रहने के लिए मजबूर कर दिया था।

तो आप जीवन में किसी भी स्तर पर क्यों न हो, आप हमेशा ही उससे ऊपर के स्तर का ध्येय बना सकते हो।

और इसी से होगी आपकी…

3. पौरुष वृद्धि :

और जितना स्पष्ट आपका ध्येय होगा, पुरुषार्थ करना आपके लिए उतना ही सरल होगा।

अब जब दृढ़ता से आपने अपना ध्येय निश्चय कर लिया है, तो फिर अब संपूर्ण समर्पण के साथ उसकी प्राप्ति के लिए अपना ज़ोर लगा दीजिए।

और उसको पाने की प्रक्रिया में..

1. मुश्किलें आएँगी,

2. तकलीफें आएँगी,

3. धैर्य धारण करना होगा,

4. संयम धारण करना होगा,

5. डर का सामना भी करना होगा,

6. मन न करने पर भी काम करना होगा,

7. सुख सुविधाओं और आराम का त्याग करना होगा,

8. शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आर्थिक जोखिम उठाने पड़ेंगे,

परंतु यही प्रक्रिया आप में साहस, धैर्य, निडरता, संयम, विवेक आदि के स्वरूप में पौरुष की वृद्धि कराएगी। और एक बार पौरुष बढ़ना शुरू हुआ, तो समय व अनुभव के साथ उसे बढ़ाना और सरल होने लगेगा।

जो लोग इस स्तर पर पहुँच गए हैं वे बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि, ब्रह्मचर्य का पालन इनके जीवन का नित्य भाग बन जाता है। उन्हें प्रति पल ब्रह्मचर्य के पालन के लिए अलग से सोचना नहीं पड़ता है।

ब्रह्मचर्य खंडन के कृत्य तो दूर की बात हैं, उनके विचार के लिए भी उनके पास व्यर्थ का समय नहीं होता। अतः ऐसे लोगों के लिए ब्रह्मचर्य का पालन अत्यंत ही सरल हो जाता है।

इन मुश्किलों, तकलीफ़ों और डर का सामना करते हुए जीवन में नयी उपलब्धियों को प्राप्त करने में जो उनको आनंद की अनुभूति होने लगती है उसके सामने फिर ये पोर्न, हस्तमैथुन तथा संभोग आदि के सुख बड़े ही तुच्छ और उबाऊ लगने लगते हैं।

इसकी पुष्टि अब जाकर मॉडर्न विज्ञान भी कर रहा है।

हमारे मस्तिष्क में जो हार्मोन आनंद की अनुभूति कराता है उसे डोपमिन (Dopamine) कहते हैं। जिस कार्य में हमें अधिक डोपमिन मिलता है, उसको हम प्राकृतिक रूप से बार बार करने के लिए प्रेरित होते हैं।

परंतु हमारे मस्तिष्क में डोपमिन मर्यादित प्रमाण में बनता है। अतः जितनी जल्दी उसका उपयोग कर लिया जाए उतनी ही जल्दी वो समाप्त हो जाता है। और अगली बार उतने ही आनंद की अनुभूति के लिए उससे भी अधिक डोपमिन की आवश्यकता होती है।

ऐसे में कुछ समय के बाद मस्तिष्क डोपामिन बनाना ही बंद कर देता है और बिना आनंद की अनुभूति के आप डिप्रेशन व एंजाइटी में चले जाते हो।

पोर्न, हस्तमैथुन, सोशल मीडिया, गेम्स, जंक फूड, ड्रग्स, धूम्रपान और अन्य नशे आदि चीज़ें आपको त्वरित डोपमिन देती हैं। इसलिए यह तुरंत ही आदत लगा देने वाली चीजें हैं।

परंतु जितनी जल्दी यह डोपमिन देती है, उतनी ही जल्दी वो चला भी जाता है।

फिर अगली बार उतने पोर्न, सिगरेट, सोशल मीडिया या ड्रग्स से काम नहीं चलता। हर अगली बार पिछली बार से अधिक पोर्न, अधिक ड्रग्स, अधिक सोशल मीडिया, अधिक सिगरेट आदि की आवश्यकता होती है।

फिर एक हद के बाद कितना भी पोर्न, सिगरेट, सोशल मीडिया, ड्रग्स आदि ले लो, कोई आपको संतुष्टि नहीं देता। क्योंकि आपने अपने डोपमिन Receptors को सुन्न (Numb) कर दिया है।

जब कि उसी के सामने, दौड़ना, तैरना, व्यायाम आदि शारीरिक श्रम, साहसिक कार्य, स्वास्थ्यप्रद भोजन, प्रकृति से जुड़ाव, व्यापार, नये कौशल (Skills), लोगों से मिलना जुलना, माता पिता गुरु समाज की सेवा करना आदि प्राकृतिक रूप से डोपमिन प्राप्त करते है, उनका डोपमिन कभी समाप्त नहीं होता और इनकी आनंद की अनुभूति लंबे समय तक चलती है।

अतः एक बार आप इस त्रिचरण विधि से अपने पौरुष की वृद्धि करने लगते हो तो आपके जीवन से धीरे धीरे,

1. पोर्न,

2. हस्तमैथुन,

3. ब्रह्मचर्य का नाश,

4. डिप्रेशन,

5. एंजाइटी,

6. आलस्य,

7. नशा,

आदि सभी समस्याओं का नाश अपने आप ही हो जाता है। क्योंकि यह सभी कोई अलग अलग समस्याएँ नहीं है। यह सभी एक ही मूलभूत समस्या के अलग अलग बाहरी लक्षण है। वो समस्या है, तामसिक जीवन ।

अतः यदि आप इस एक मूलभूत समस्या को जड़ से हटा दो तो अन्य समस्त समस्याओं का हल अपने आप ही आ जाता है। सबका अलग अलग रूप से उपचार करने की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी। और इस मूलभूत समस्या का एकमात्र रामबाण इलाज है, पौरुष वृद्धि।

जितना अधिक आप अपने पौरुष की वृद्धि करोगे उतना ही उच्च कक्षा के सुखों की आप प्राप्ति कर पाओगे।

जिससे इन पोर्न, हस्तमैथुन, नशे आदि सस्ते सुखों में से आपकी रुचि स्वयं ही निकल जाएगी और आप अपने ध्येयों को सहजता से प्राप्त कर पाओगे।

हालाँकि हमारा तो यह मानना है कि,

यदि आप ब्रह्मचर्य का यह तप करने ही वाले हो,

और इसी तप से यदि उच्च से उच्च ध्येय की प्राप्ति भी की जा सकती है,

तो क्यों न समग्र अस्तित्व का सबसे ऊँचा ध्येय बनाया जाए?

कुछ ऐसा जिसे प्राप्त करने के बाद कुछ

और प्राप्त करने की इच्छा ही न रहे।

अब तक के इतिहास में सिर्फ़ एक ही ऐसा ध्येय प्रमाणित हुआ है।

जिसकी प्राप्ति के पश्चात मनुष्य कुछ और नहीं माँगता है। वो है समस्त ध्येयों की प्राप्ति कराने वाले, स्वयं भगवान ।

आचार्यगण कहते है कि, इतिहास में जिस जिसने एक बार उनकी प्राप्ति कर ली है। उसे फिर लोक परलोक के समस्त सुख एक सूअर की विष्ठा के समान लगने लगते हैं। उस स्तर का सुख है भगवद्द्माप्ति में।

तो फिर उनसे नीचा कुछ चाहिए भी क्यों?

अरबों खर्बो जन्मों में लाखों करोड़ों बार आपको चाहिए है वो मिला होगा। फिर वो धन हो, बल हो, सुंदरता हो, ख्याति हो, स्त्री हो, सत्ता हो, स्वर्ग हो या स्वयं इंद्रासन ही क्यों न हो।

परंतु जिसकी करोड़ों बार प्राप्ति से भी संतुष्टि नहीं हो रही है, उसे एक और बार प्राप्त करने के लिए पुनः इतना सारा तप क्यों व्यर्थ गंवाना? जो कि वैसे भी फिरसे मृत्यु के समय हमसे छीन ली जाने वाली है।

अतः ब्रह्मचर्य का पालन यदि आप मात्र शरीर की सुंदरता, चेहरे पे चमक, बाजुओं बल, मन में स्थिरता और स्मरणशक्ति, आयु व आत्मविश्वास आदि में वृद्धि के लिए कर रहे हो, तो यह मूर्खता है।

क्योंकि यदि एक ही दाम में आपको मुट्ठी भर चावल मिल रहे हैं, और उसी दाम में पूरी दुकान मिल रही है, तो मुट्ठी भर चावल भला क्यों लेना?

आपको ब्रह्मचर्य के पालन से यदि समग्र अस्तित्व का सबसे बड़ा ध्येय प्राप्त हो सकता है, ध्येयों को प्राप्त कराने वाले साक्षात भगवान की प्राप्ति हो सकती है। तो इन क्षणभंगुर फलों की प्राप्ति के लिए इतनी मेहनत क्यों करनी; जो कि वैसे भी मृत्यु के समय हाथ से चली जाएगी।

अतः बुद्धिमान बनें!

और भले आपको लगे कि आप पतित से भी पतित हो अभी, फिर भी अपने ब्रह्मचर्य का ध्येय सर्वोच्च रखें।

परंतु संपूर्ण पुस्तक में ब्रह्मचर्य पालन का सबसे बड़ा चरण पौरुष ही बताया गया है, क्या ब्रह्मचर्य मात्र पुरुषों के लिए है? या स्त्रियों को भी करना चाहिए? आइए समझते हैं।

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